प्रेमम : एक रहस्य!
प्रेमम : आरम्भिक कड़ी।
"प्रेम क्या है? मैंने अक्सर इसी सवाल को चारों ओर गूंजते हुए देखा है। मुझे वाकई बहुत ही हँसी आती है जब लोग इसे प्यार कहते हैं, जब लोग कहते हैं कि मैं तुम्हारे बिन कैसे जी सकूंगा? मैं मर जाऊंगा या जो तुम्हें मुझसे दूर करेगा उसको जिंदा नही छोडूंगा। मुझे वाकई ताज्जुब होता है यार.. क्या मरने-मारने का नाम प्रेम हैं। नहीं! बिल्कुल भी नही! प्रेम जीवन का नाम है। प्रेम ठूंठ वृक्ष नही, नव-अंकुरित पुष्प है। प्रेम ही जीवन का मूल है। प्रेम केवल वह नही जो प्रेमी-प्रेमिका के बीच का उत्सर्ग हो, तो फिर आज प्रेम यहीं तक क्यों सिमट कर रह गया है। क्यों ये कथित प्रेम पैरों की बेड़िया बन गया है? प्रेम कभी भी कर्तव्य के मार्ग पर अग्रसर होने से नही रोकता, यदि ऐसा होता तो श्रीकृष्ण बरसाना और गोकुला की गलियों में ही रह गए होते फिर न महाभारत होता न ही कोई अन्य धर्मयुद्ध! प्रेम, धर्म का मर्म है, प्रेम जीवन का अभिप्राय है। वह प्रत्येक व्यक्ति, विषय वस्तु अथवा भाव जो आपके जीवन में आप पर प्रभाव डालता है कहीं न कहीं उसमें आपके लिए प्रेम अवश्य छिपा होता है। प्रेम की परिभाषा तो कदापि सम्भव नही है परन्तु बस इतना जान लीजिए केवल प्रेम में ही वह शक्ति है जो संसार की हर शक्ति पर भारी पड़ने की क्षमता रखती है। यह संसार प्रेम के कारण स्वर्गमयी हो सकता है, अतः प्रेम को ही जीवन का उद्देश्य रखिये।" , कहते हुए उसने एक पल को रुककर गहरी सांस लिया, फिर माइक वापिस स्टैंड में लगाते हुए थोड़ा दूर चला गया। परिसर उपस्थित सभी जन उसके इस वक्तव्य से बहुत अधिक प्रभावित हुए थे। चारों ओर तालियों की गड़गड़ाहट गूंज रही थी। स्टेज बहुत ही शानदार तरीके से सजाया गया था, हर एक चीज करीने से सजाकर रखी हुई थी, ऊपर बड़े बड़े चमकते रंग-बिरंगे अक्षरों में 'दिल्ली विश्वविद्यालय' लिखा हुआ फ़्लैश हो रहा था।
"एह..! कितना मुश्किल काम है यार ये भाषणबाजी करना।" वहां बज रही तालियों और उमड़े हुए शोर पर ध्यान न देते हुए वह अपना सिर खुजाता हुआ स्टेज से उतरकर एक ओर भागा।
"ओये अनि! क्या गजब भाषण दिया यार! मुझे लगा नही था केमिस्ट्री के बन्दे की लव से इतनी केमिस्ट्री बनती होगी।" एक लड़की ने उसका गाल खींचते हुए कहा। उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव थे वह अत्यधिक खुशी से उछल रही थी।
"अबे गाल खींच-खींचकर जवानी में ही झुर्रियां ला देगी क्या मेरे चेहरे पर! पता है न चार दिन से वही भाषण रट रहा था। कौन कहा था तुझे मेरा नाम लिखने को और ये दिखाने को!" उसके सामने वही कागज दिखाते जिसमें से उसने रट्टा मारा हुआ था, दिखावे का गुस्सा करता हुआ बोला।
"तेरे गाल पर तो बस मेरा ही हक़ है!" कहते हुए वह लड़की उसके और करीब जाने की कोशिश करने लगी।
"अबे हट्ट-हट्ट! पता है न मैं बाल-ब्रह्मचारी हूँ! थोड़ा लाज शर्म है कि नही।" बिदकते हुए वह ऐसे भागा जैसे सांड को देखकर लाल कपड़ा पहना हुआ शख्स भागता हो।
"वाह! दिल्ली साउथ जोन यूनिवर्सिटी का मोस्ट हैंडसम लड़का अब भी लड़कियों से डरकर भागता है। हीहीही..!" वह लड़की खिलखिलाकर हंस पड़ी।
"अगर तू मेरी बचपन की दोस्त न होती न तो देख लेता मैं तुझे!" अनि ने दिखावटी गुस्सा किया।
"अब क्या बुराई है यार! अभी भी देख ले, देख मैं तो मेकअप भी नही करती।" लड़की अपने चेहरे पर आई हुई उलझी हुई लटो को सुलझाकर पीछे करते हुए बोली।
"देखो मिस प्याऊ (पीयू) ! अब बस ना, तुझे पता है दुनिया में मैं बस एक ही चीज से चिढ़ता हूँ, और वो है लड़कियों का मुझसे चिपकना!" अनि को अब सचमुच गुस्सा आने लगा था।
"सॉरी न अनि! तू यहाँ मेरा इकलौता दोस्त है! तुझसे मजाक नही करूँ तो किससे करूँ?" पीयू मनाने की कोशिश करते हुए बोली।
"जा दूसरे दोस्त बना ले!" अनि मुँह फेरकर गुस्से से बोला।
"अच्छा बाबा! अब से ये वाला मजाक नही करुंगी।" पीयू अपना कान पकड़कर उसका रास्ता रोकते हुए बोली।
"मतलब दूसरा तो करेगी न!" अनि ने मुँह टेड़ा करके उसकी ओर देखा।
"कोई शक!" पीयू छोटी बच्ची की तरह चहकी।
वाइट चुस्त जीन्स और पिंक टॉप में वो बहुत ही क्यूट एंजेल लग रही थी, उसके कमर तक लम्बे काले बाल हल्की हवा चलने के कारण लहरा रहे थे। वह 5 फुट 7 इंच लंबी और खूब गोरी लड़की थी, उसने पैरों में सुनहरे रंग की ऊँची हिलदार सैंडल पहन रखा था, जिस कारण वह अनि के बराबर तक आ रही थी। इस सूट में वह बला की खूबसूरत लग रही थी, इतनी की एकाध बार को शायद रति भी लजा जाए। अनि भी वाइट चेक शर्ट और ब्लू जीन्स में कमाल लग रहा था, शर्ट के ऊपर उसने नेवी ब्लू कलर का ब्लेजर पहना हुआ था जिसका बटन खुला हुआ था, टाई बस गर्दन में लटकी हुई थी। वह किसी भी तरह 6 फुट 3 इंच से कम न था, साथ ही भरपूर कसरती जिस्म का मालिक था। रंग गोरा, खूब गोरा ऐसा की जैसे मक्खन में चुटकी भर सिंदूर मिला दिया गया हो। पीछे कॉलेज का मैदान यूं लग रहा था जैसे नई नई दुल्हन सजी हुई हो, अब भी चारों ओर शोर मचा हुआ था, कभी कोई सांग तो डांस प्रोग्राम रेडी था, पर इन दोनों का ध्यान उस तरफ बिल्कुल भी न था।
अनिरुद्ध डी.यू. साउथ जोन में केमिस्ट्री का सबसे होनहार छात्र और पियूषा भी फोरेंसिक साइंस की स्टूडेंट थी। दोनों बचपन के दोस्त थे, बहुत गहरे दोस्त! इतने गहरे की जब से ये दोनों दोस्त बने कोई और इनका दोस्त न बन सका। दोनों एक दूसरे की बहुत परवाह करते हैं तो टांग खींचने का कोई मौका भी नही छोड़ते। इसीलिए तो ग्रेजुएशन के लास्ट ईयर भी इन दोनों की बच्चों वाली हरकते न छूटी। दोनों ही मूलतः मध्यप्रदेश के निवासी थे।
बात करते हुए दोनों गेट के समीप आ चुके थे, अब दोनों को अपने अपने हॉस्टल भी जाना था। हालांकि आज एनुअल फंक्शन था जिस कारण ये दोनों कुछ जल्दी ही बाहर निकल आये।
"ओये अनि! सुन शाम को आ जाना।" पीयू तेज कदमों से आगे बढ़ते हुए बोली।
"हाँ अभी शाम की बेइज्जती सभा बाकी जो है, फिर मुझे मेरे अवतार में आने से न रोकना।" अनि ने मुँह टेड़ा करके कहा।
"धत्त तेरी की।" कहती हुई पीयू भागी, अनिरुद्ध भी उसके पीछे-पीछे भागा और उसके बालों को पकड़कर खींच लिया।
"अंकल को बोल दूंगी बहुत तंग करता है।" पियूषा धमकाते हुए बोली।
"कौन मैं? मैं तो एक चींटी को भी तंग नही करता, कॉकरोच को भी नही, छिपकली को भी नही, हे भगवान! ऐसा सुनने से पहले मुझे उठा क्यों नही लिया।" बिफरते हुए अनिरुद्ध वहीं फैल गया, वहां से गुजरते हुए सभी उसकी इस हरकत पर जोर जोर से हंस रहे थे। किसी को यकीन नही हो रहा था कि यह वही लड़का है जो अभी इतने सीरियस मुद्दे पर भाषण दे रहा था।
"अच्छा चल नही करती शिकायत! अब उठ, और जा के कपड़े साफ कर लेना।" पियूषा उसे पैरों से ठोकर मारते हुए बोली।
"हाये मोरी मईया! मर गया रे!" कहते हुए अनिरुद्ध उठकर तेजी से ऐसे भागा जैसे कमान से तीर छूटकर निकला हो। पियूषा अपना मुँह पकड़कर हंसी दबाने की कोशिश करने लगी।
"गजब लड़का है, कभी समझ नही आता है।" पियूषा अपने सिर पर हाथ मारती है।
◆◆◆
शाम का वक़्त!
अनिरुद्ध पार्क में घास पर बैठा पियूषा का इंतजार कर रहा था, वातावरण में अजीब सी शांति थी, एक गहरा सा सुकून! यह सुकून जो उसे प्रकृति से जोड़े रखता था। अपने दाहिने हाथ से नरम-नरम घास को छूते हुए बहुत प्रसन्न नजर आ रहा था। अचानक उसे अपनी पीछे के ओर से किसी के आने की आहट हुई वह बिना देखे घास तोड़कर चबाने लगा।
"बड़ा प्रेम के कसीदे पढ़े जा रहे हैं कहीं प्यार व्यार के चक्कर में तो नही पड़ गए विरुद्ध जी।" उसके पीछे से आती हुई एक लड़की बोली। उसने हल्का झीना वाइट टॉप और ब्लैक कलर की रिप्ड जीन्स पहन रखा था। उसके एक हाथ में उसकी सैंडल थी, दूसरे में पर्स थामे हुए थी, जिसपर कढ़ाई करके बेहद खूबसूरत सा गुलाब बना हुआ था। वह अपने मुलायम पांवों से नरम घास को रौंदते हुए अनिरुद्ध की ओर बढ़ने लगी।
"ऐसा कुछ नही है निराशा जी।" कहते हुए अनिरुद्ध ने मुँह लटका लिया, जैसे उसे उसके सवाल से दर्द हुआ हो। यह उसकी सहपाठी आशा थी, जो उसे बहुत अधिक पसंद करती थी परन्तु अनिरुद्ध उसे दोस्त तक भी न मानता था। परन्तु आशा ने ठान लिया था अब वह किसी भी तरह उसे हासिल करके ही रहेगी।
"तो फिर यहां किसका इंतज़ार किया जा रहा है विरुद्ध जी?" आशा ने उसके और करीब पहुँचते हुए सवाल किया।
"क..कुछ नही! बस घास खाने का मन हुआ तो चले आये!" अनिरुद्ध को कुछ कहते न बना।
"क्या विरुद्ध जी, प्यार के पकौड़े खाने की उम्र में हरी-हरी घास चबा रहे हो।" कहते हुए आशा उससे लिपटने लगी।
"अरे क्या कर रही हो निराशा जी! आपको पता है न हम बाल ब्रह्मचारी है, बजरंग बली के पुजारी हैं। हे संकटमोचन अपने इस भक्त पर आए संकट को टालो।" रोनी सूरत बनाकर अनिरुद्ध आसमान की ओर चिल्लाया।
"प्लीज अब इनकार मत करो अनि! मैं कब से तुमसे कहना चाहती हूँ कि…!"
"कि घास जानवर खाते हैं तुम इंसान हो इसलिए इंसानो का ही भोजन किया करो। है न!" आशा की बात काटते हुए अनिरुद्ध ने कहा।
"नहीं! वो बात नहीं है। म..मैं....." आशा ने कुछ बोलना चाहा पर अनिरुद्ध ने अपने हाथ से ढक्कन की तरह उसके मुँह को बंद कर दिया। वह गूँ-गूँ करके रह गयी। उसकी आँखों से आँसू निकल आये।
"देखिये अब से हम फूल पत्ता कांटा भी खा लेंगे! आपकी खुशी के लिए बकरियों के झुंड में भी रह लेंगे पर ये आंसुओ के मोती न बहाओ! हमसे नही देखा जाता।" अनिरुद्ध विनती करने के अंदाज़ में बोला।
"तुम कभी नही समझोगे अनि!" कहते हुए आशा वहां से पैर पटकते हुए चली गयी।
"बात तो सही है निराशा जी! भला मैं बकरियों की भाषा कैसे समझूंगा।" अनिरुद्ध अपना सिर खुजाते हुए स्वयं को असमंजस में फंसे होने का दिखावा करता हुआ बोला।
"उफ्फ! हे बजरंगबली, क्यों अपने भक्त की बलि देना चाहते हो, मुझे बचा लो इन आफत की पूड़ियों से।" कहता है अनि वहीं घास पर लोट गया।
थोड़ी देर बाद पियूषा वहां आयी, अनिरुद्ध को मुँह छिपाकर घास में लोटे हुए देखकर उसकी हँसी कंट्रोल न हुई, अनिरुद्ध हड़बड़ाकर उठा, वह ऐसे मुँह छिपा रहा था मानो उसकी इज्जत लूट गयी हो, और धड़ाम से वापिस गिर गया।
"अरे क्या हुआ!" पियूषा ने उसके पास जाकर शांत स्वर में पूछा।
"अरे तुम क्या जानो मेरा दर्द!" कहते हुए अनि बिफर गया, उसके आँखों में आँसू आ गए।
"ठीक है डॉक्टर के पास चलो!" पीयू ने उसे सहारा देकर उठाया।
"इस दर्द का इलाज किसी डॉक्टर के पास नही है।" अनि ने पीयू को घूरते हुए लाचारी से कहा ।
"ठीक है मत जा मेरा क्या?" पीयू उसकी नौटंकिया अच्छे से जानती थी, वह भी वही बगल में बैठ गयी। "अच्छा खासा सांड हो रखा है फिर भी बच्चों की तरह हरकतें! मैं तेरी मम्मी नही हूँ हुंह..!" पियूषा ताने देते हुए बोली, अनि उसकी ओर ऐसे ताक रहा था जैसे बच्चा खिलौना छीन जाने पर ताकता है।
"दर्द हो रहा है!" अनि ने फिर दुहराया।
"कहाँ!" एक बार को पियूषा को लगा कहीं सच में कुछ हो तो नही गया।
"दिल में!" कहते हुए अनि ने अपने सीने को कस कर दबाया।
"हट्ट! धत्त तेरी की! मैं फालतू ही आ जाती हूँ तेरे बहकावे में! बहुत सताता है, रुक कॉल करने दे, अंकल को।" पियूषा अपना मोबाइल निकालते हुए बोली।
"दिल में दर्द सा हुआ है, कांटा सा कोई लगा है..!" अनि, पियूषा की बातों को अनसुनी कर अपने मस्ती में गाने लगा।
"ठीक है तू बिजी रह अपनी नौटंकी में, मैं कर्नल अंकल को कॉल कर ही देती हूँ।" कहते हुए पियूषा ने अपना फ़ोन पर कोई नम्बर डायल करने लगी, जो कर्नल अंकल के नाम से सेव था।
"क्या पप्पा जी को!" अनिरुद्ध उछलकर घुटनों पर बैठ गया। "काहे इतना बड़ा पाप कर रही हो, तुम्हारे अंकल जी हमको एंकिल पर अटका के धो देंगे।" कहते वक़्त अनि के चेहरे पर जमाने भर की मासूमियत छा गयी थी, ऐसा लग रहा था कि अब वो बिचारा रो ही देगा, पियूषा उसकी यह हालत देखकर खिलखिलाकर हँस पड़ी।
"अब से जो आप कहेंगी हम वही करेंगे मिस प्याऊ!" अनि बेमन से बोला, जैसे ये उसके साथ जबर्दस्ती किया जा रहा हो।
"अभी वापिस हॉस्टल चल गैंडे!" पियूषा उसका कान खींचते हुए बोली। अब शाम गहरी होती जा रही थी, चाँद की दूध सी उजली चाँदनी में दोनों का उजला चेहरा दमक रहा था।
दोनों अपनी दोस्ती से बहुत अधिक खुश थे, सारा वक़्त एक दूसरे के साथ ही बिताते, उनके परिवार वाले भी उन्हें समझते थे। पर लोगों को कभी कभी शक होता था कि ये दोनों बस दोस्त तो नही हैं। पियूषा थोड़ी समझदार थी, पर अनि की टांग खिंचने का कोई अवसर न चूंकती थी। और अनि, भले वो पढ़ाई में सबसे बेहतर क्यों न हो पर उसका स्वभाव ऐसा था कि हर किसी को वो बोझ ही लगता था। वह अपने पापा तक को भी इरीटेट करने से बाज नही आता था।
दोनों कदम से कदम मिलाते हुए चलते जा रहे थे। पियूषा के चेहरे पर एक सुकून था, वह अनि को समझती थी और उसे उम्मीद था कि एक दिन दुनिया भी अनि को समझेगी। पर वह खुद भी अनि के इस व्यवहार से परेशान हो जाती थी, वह उसे तब मिली थी जब उसका कोई दोस्त न था, अनि अपनी कक्षा में हरेक को तंग करके रखता था इसलिए कोई उसके करीब न जाता था। पहली बार पियूषा उसके सीट पर बैठी, फिर दोनों में दोस्ती होती गयी, इतनी गहरी की दोनों के परिवार भी एक हो गए।
"अच्छा अब चल बाये! गुड नाईट हाँ!" पियूषा अपने रूम की ओर जाते हुए बोली।
"चिन्नी नाईट मिस प्याऊ! शर्बत सपने।" कहते हुए अनि दूसरी ओर घूम गया। पीयू फिर से खिलखिलाकर हँस पड़ी।
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"बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवनकुमार! बल बुद्धि बिद्या देहुँ महँ, हरहुं क्लेश विकार!" सुबह-सुबह अनि नहा धोकर हनुमान चालीसा का पाठ कर रहा था। तभी धड़ाम से दरवाजा खुला पर उसने ध्यान नही दिया, जैसे उसे पता हो कि कौन आया है।
"हे हनुमान जी! अपने इस भक्त की पुकार सुन लो, हमेशा की तरह मुझे इन गाड़ियों मेरा मतलब आफत की पूड़ियों से बचाकर रखना। अगर इनके हत्थे चढ़ा दिया तो मेरा क्या होगा! हूहूहू…!" आंख बंद किये हाथ जोड़े वह विनीत स्वर में प्रार्थना कर रहा था। अभी उसके जिस्म पर केवल सफेद टॉवेल लिपटा हुआ था जो इस बात का द्योतक था कि वह सीधा नहा धोकर ही पूजा में लगा हुआ था।
"अच्छा एक बात बता अनि?" पियूषा उसके बिना कुछ कहे बेड पर बैठते हुए बोली।
"मैं तो दो बात बता दूं प्याऊ जी!" अनि ने अपने हाथों को लहराते हुए कहा।
"लड़की तो मैं भी हूँ! फिर रोज लड़कियों से बचने की प्रार्थना क्यों करते हो?" पियूषा ने आँखे तरेर कर पूछा।
"लड़की हो ये मैटर नही करता! दोस्त हो ये मैटर करता है।" अनि अचानक ही गम्भीर होकर बोला। "और तुम्हारे बाद कोई मेरा दोस्त बन ये पॉसिबल ही नही है। झेल ही नही सकता कोई मुझे!" वह खुशी से चहका, पियूषा उसके इस अंदाज से झेंप गयी पर उसे समझ न आया कि वह क्या रियेक्ट करे।
"क्या हुआ आज इतना गरीब क्यों लग रही हो?" अनि ने उसकी ओर ध्यान दे देखते हुए बोला।
"गरीब! हुंह!!" पियूषा बिना कुछ देखे ही उठकर जाने लगी।
"क्या हुआ है यार! कुछ तो हुआ है!" अनि ने उसे रोकते हुए बोला।
"कुछ नही!" पियूषा हाथ झटकारते हुए उसे दूर कर दी।
"उई माँ! चोट लगता है यार!" अनि जोर से चीखते हुए कहा। "बताओ न प्याऊ आज इतनी गरमा काहे रही हो?"
"तुम मुझे दोस्त मानते हो न!" पियूषा ने सपाट स्वर में पूछा।
"ये तुम्हें आज पता चला!" अनि ने आश्चर्य जताते हुए उसकी आँखों में घूरा।
"अनि! प्लीज बी सीरियस!" पियूषा अपने एक एक शब्द पर जोर देते हुए बोली।
"सीरियस? नही! नही! मुझे आई सी यू में भर्ती नही होना।" अनि ने ऐसे कहा मानो उसपर कोई पहाड़ टूट पड़ा हो।
"मैं उस सीरियस की बात नही कर रही, उस गुंडे राकेश और उसके गुर्गों ने आज फिर मुझे छेड़ने की कोशिश की।" पियूषा की रोनी सूरत बन गयी थी, एक क्षण को उसे लगा जैसे सिर से पत्थर पीट रही हो।
"उसकी ये मजाल!" अनि तैश में आ गया। "अभी कहां है वो?"
"गेट पर ही रहते हैं लफ़ंडर!" पियूषा के मुंह से उनके लिए नफरत भरे शब्द निकले।
अनि ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और भागता हुआ गेट पर पहुंचा। उसने बाजू की आस्तीनें मोड़ी हुई थी, जिस कारण उसके फूलते-पिचकते मशल्स आसानी से दिखाई दे रहे थे। वहाँ राकेश और उसके कुछ गुंडे डेरा जमा के बैठे हुए थे।
"भाई प्रॉब्लम क्या है तुम लोगो की?" जाते ही उसने राकेश से सवाल किया।
"ये कौन है?" राकेश ने अनिरुद्ध को घूरते हुए अपने साथियों से पूछा।
"अरे ये वही है, इसके पीछे ही तो सारी लड़कियां पड़ी हुई हैं। तभी तो कोई घास नहीं डालती हमें।" एक गुर्गे ने उसके कान में कहा।
"अरे कभी गेट के अंदर भी जाते तब न कुछ पता चलता! वहां पे जो घोड़े बंधे हैं उनको घास डाला जाता है, तुम नहीं खाते तुम्हारी गलती!" अनि ने मुंह बनाते हुए कहा, अब तक पियूषा भी वहीं आ चुकी थी।
"देख शरीफ़ज़ादे तुझसे हमारा कोई पंगा नही है, तू चुपचाप निकल ले वरना तेरी हड्डियों का चूरमा बनाते देर न लगेगी।" राकेश पियूषा को आते देखकर बोला।
"देखो भाई लोग मुझे सुरमा बना के तुम्हें कुछ नही मिलेगा! बस मुझे एक बात जाननी है.. ये लड़की क्यों छेड़ते हो तुम लोग!" अनि अब भी अपने अंदाज में कहे जा रहा था।
"अरे भाई इस कांटे को उखाड़ और फूल को उठाकर चल!" एक गुर्गे ने राकेश को हाकी स्टिक देते हुए कहा।
इससे पहले अनि कोई हरकत करता, हाकी स्टिक के जोरदार वार ने उसे जमीन पर ला दिया।
"अरे क्या जगब कर रहे हो भाई लोग, मुझपे कुछ वहम तो करो।" अनि अपने हाथों से उसे रोकने की कोशिश किया, पर राकेश भी कम शक्तिशाली न था, उसके अगले वार से उसका सिर फट गया। माथे से खून भल्ल-भल्ल कर बहने लगा, उसका चेहरा अपने ही खून से नहा गया था।
"अनि…!!" अनि की यह हालत देख पियूषा चीखी। पियूषा अब पूरी तरह गुस्से से भर गई थी।
राकेश उसकी ओर बढ़ा, उसने पियूषा का हाथ पकड़ने की कोशिश की। पियूषा ने अपने घुटने से उसके दोनों जांघो के बीच करारा वार किया, राकेश दोनों हाथों से वहीं पकड़े हुए जमीन पर बैठ गया। उसके गुर्गे तेजी से पियूषा की ओर बढ़े, पर पियूषा अब रणचण्डी बन चुकी थी, उसने अपने हाथों में अपनी हाई हील की सैंडल थामी और ऐसे घुमाया जैसे बल्लेबाज अपनी ओर आती गेंद को देखकर घूमाता है, सैंडल का नुकीला सिरा एक गुर्गे के गाल को चीरता हुआ निकल गया, वह दर्द से बिलबिला उठा। दूसरा लड़का उसकी ओर बढ़ा, पियूषा ने अपने लंबे नाखून उसकी त्वचा में चुभो दिए, वह बिचारा दर्द से चिल्लाने लगा। राकेश उठने की कोशिश कर रहा था, तभी पियूषा ने दुबारा उसके उसी मर्मस्थल पर लात से जोरदार वार किया, इस बार बेचारा सह न सका और उसका मस्तिष्क अंधकार की गर्त में खो गया। यह देखकर गुंडो की हालत पतली हो गयी, जिसको जिधर से मौका मिला भागने लगे। उनमे से एक दो राकेश के बेहोश शरीर को जमीन पर घसीटते हुए भाग रहे थे।
"आओ कुत्तों के बच्चों! लड़कियों को कमज़ोर समझ रखा है तुमने!" पियूषा गुस्से में जोर से चीखी।
"अब वो बिचारे कुतिया का मूत्र पीकर ही तुमसे लड़ने आएंगे! अहह..!" अनि ने कराहते हुए कहा।
"और तुमसे किसने कहा था गांधी जी बनने को?" पियूषा उसपर भी भड़क गई।
"ऊई.. दर्द हो रहा है, जल्दी से हॉस्पिटल ले चलो!" अनि ने अपने अपने माथे को पकड़कर छटपटाते हुए कहा।
"नौटंकी!" पियूषा ने बस इतना ही कहा, वह जानती थी कि अगर अनि चाहता तो इनको आराम से पिट सकता था पर वह शायद जानबूझकर ऐसा नही करना चाहता था। दोनों जल्दी से अनि के कमरे में पहुंचे।
'जानता हूँ तुम ये सोच रही होगी कि मैंने ये क्यों किया! पर मेरी दोस्त हो तुम, और मेरी दोस्त किसी से डर जाए मुझे ये कुबूल नही! अब ये गुंडे किसी लड़की के करीब फटकने से पहले सौ सौ बार सोचेंगे!" अनि ने अपने आप से कहा। पियूषा साफ कपड़े से उसका जख्म साफ कर रही थी। खून बहुत ज्यादा नही बहा था न ही चोट ज्यादा गहरी थी, ऐसा लग रहा था जैसे अनि ने उसमे कोई ब्लड जैसा दिखने वाला रेड लिक्विड मिलाया हो। पीयू ने मरहम लगाकर दवा दे दिया और उठने-फिरने को मना कर बाहर निकली और दरवाजे पर जाकर बैठ गयी।
■■■
एक सप्ताह बाद..
"अब ठीक होते हो या अंकल जी को कॉल करूँ!" अनि हस दिन से अब तक बेड पर ही पड़ा हुआ था। पीयू ने आते ही धमकाते हुए पूछा।
"ऐसे कैसे ठीक हो जाऊं? तुमने ही तो किया है ये, देखो कितना सीरियस हूँ मैं! मैंने कहा था आई सी यू में ले चलो मुझे पर तुम तो हॉस्पिटल के दरवाजे तक न ले गयी!" अनि निराशा भरे स्वर में बोला।
"मैंने ही बचाया है तुझे!" पियूषा ने मुँह बनाया।
"हुंह..!" प्रत्युत्तर में अनि ने भी वैसा ही मुँह बना दिया।
"ठीक है! मत ठीक हो। बाहर लड़कियों की भीड़ है मैं अंदर आने देती हूँ।" पियूषा ने सपाट लहज़े में कहा।
"नही नही नही..! ऐसा जुल्म न करना।" अनि फटाक से उठते हुए बोला, ऐसा लग रहा था मानो उसके जिस्म में बिजली दौड़ गयी हो। पियूषा उसकी इस हरकत पर हँसने लगी।
"एक मिनट! यहां का वार्डन तो तुम्हारे अलावा किसी को मेरे रूम तक आने नही दे सकता न!" अनि ने अपने सिर पर हाथ मारा! पियूषा अब भी हँसे जा रही थी।
"मूरख बना गयी लड़की!" अनि ने ऐसे कहा जैसे एग्जाम हॉल में कोई आंसर बताये और आंसर सीट से मिलाने पर वह गलत निकल जाए, बिचारे की ठीक यही दशा हो गयी थी।
"अच्छा वो सब छोड़, ये बता इस साल हॉलिडेज कहा बिताने का इरादा है?" पियूषा ने बात बदलने की गरज से कहा।
"कहाँ?" अनि ने आंखे चौड़ी की।
"यू के में" पियूषा ने कहा।
"न न न मैं इंडिया से बाहर कहीं न जाऊंगा।" अनि फिर बिस्तर पर फैलकर बैठ गया।
"मैं उत्तराखण्ड की बात कर रही हूँ बुद्धू!" पियूषा ने दो टिकेटनुमा पर्चे निकालते हुए कहा।
"तो कहा जाना है मिस प्याऊ जी!" अनि ने पूछा।
"देहरादून!"
क्रमशः...
"लिखने में काफी मेहनत करनी पड़ती है, काफी समय भी लगता है इसलिए आप सभी से निवेदन है कि थोड़ा समय निकालकर प्रत्येक पार्ट पर आपको जैसा लगा वैसी समीक्षा/रिव्यू अवश्य कमेंट करें! और कृपया नाइस और बढ़िया से आगे बढ़कर चार शब्द बोलें, हमारी मेहनत का परिणाम आपकी समीक्षाएं ही हैं।"
आपकी समीक्षाओं के इंतजार में..
मैं: समीक्षाओं का भूखा एक अदना सा लेखक!
Rohan Nanda
15-Dec-2021 09:14 PM
Kahani ki shuruat to kafi achchi h, vaise apki lekhn shaili ka jvab nhi
Reply
मनोज कुमार "MJ"
16-Aug-2023 12:35 PM
dhanyawad
Reply
Sandhya Prakash
15-Dec-2021 06:56 PM
Nice start ...
Reply
मनोज कुमार "MJ"
16-Aug-2023 12:35 PM
thank you
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Abhilasha sahay
08-Dec-2021 07:47 PM
Very nice 👌
Reply
मनोज कुमार "MJ"
16-Aug-2023 12:36 PM
thank you
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